२०१५ में प्रकाशित कागज की नाव राजेन्द्र वर्मा का पहला नवगीत संग्रह है। -- गीतों के इस संग्रह में ८० पृष्ठ हैं और इसका मूल्य है १५० रुपये। प्रकाशक हैं- उत्तरायण प्रकाशन, लखनऊ
राजेन्द्र वर्मा कागज की नाव में अपने चिंतन, अवलोकन, और आकलन के आधार पर वैषम्य को इंगित कर उसके उन्मूलन की दिशा दिखाते हैं। उनके नवगीत उपदेश या समाधान को नहीं संकेत को लक्ष्य बनाते हैं। उनके लिये लेखन केवल शौक नहीं अपितु आत्माभिव्यक्ति और समाज सुधार का माध्यम है। वे किसी भी विधा में लिखें उनकी दृष्टि चतुर्दिक हो रही गड़बड़ियों को सुधारकर सत-शिव-सुन्दर की स्थापना हेतु सक्रिय रही है। सच की अवहेलना उन्हें सहन नहीं होती। आम आदमी की आवाज़ न सुनी जाए तो विषमता समाप्त नहीं हो सकती। राजेंद्र जी सर्वोच्च व्यवस्थापक और प्रशासक को सुनने की प्रेरणा देते हैं।
बाह्य सूत्र[]
- कागज की नाव संग्रह और संकलन में संजीव सलिल की समीक्षा।