२०१५ में प्रकाशित हाशिये समय के मधुकर अष्ठाना का आठवाँ नवगीत संग्रह है। ६५ गीतों के इस संग्रह में १५९ पृष्ठ हैं और इसका मूल्य है ३०० रुपये। प्रकाशक हैं- उत्तरायण प्रकाशन, के ३९७ आशियाना कॉलोनी, लखनऊ २२६०१२।
प्रस्तुत संग्रह में शिल्पगत सौन्दर्य के साथ ही कथ्य में समकालीन यथार्थ और मानवीय सम्वेदनाओं की मार्मिकता को जिस सफलता के साथ अभिव्यक्त किया है वह संग्रह के हर गीत में दिखाई देता है। श्रेष्ठता और स्तरीयता के निकष पर पूरी तरह खरे उनके गीत जीवन के हर पक्ष की गहन विवेचना द्वारा जनधर्मी चेतना की रचनाएँ हैं।-वर्तमान शोषण-उत्पीड़न, व्यवस्था की त्रासदी, विषमता, विघटन, विकृति, विवशता, मानव-मूल्यों में ह्रास, सांस्कृतिक पतन और प्रदूषण तथा आम-आदमी के जीवन संघर्ष को चित्रित करते हुए उसके साथ अपनी प्रबल पक्षधरता को व्यक्त किया गया है। संग्रह के गीतों को शीर्षक तो नहीं दिया गया है अपितु क्रम संख्या देकर प्रस्तुत किया है। अष्ठाना जी ने समयगत यथार्थ के लगभग हर बिन्दु पर अपनी प्रतिक्रियात्मक सर्जना को गीतों में व्यक्त किया है।
बाह्य सूत्र[]
- हाशिये समय के संग्रह और संकलन पर जगदीश पंकज की समीक्षा
मधुकर अष्ठाना की कृतियाँ
|
---|
वक्त आदमखोर | न जाने क्या हुआ मन को | और कितनी देर | मुट्ठी भर अस्थियाँ | दर्द जोगिया ठहर गया | कुछ तो कीजिये | हाशिये समय के | खाली हाथ कबीर | पहने हुए धूप के चेहरे |